बुधवार, 12 जनवरी 2011

श्रद्धांजलि





हॉकी की नर्सरी का एक और फूल मुरझा गया। अपने ताकतवर शॉट और कलात्मक हॉकी के लिए मशहूर नूरुद्दीन का रविवार रात को 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे भोपाल हॉकी के जेंटिल कहे जाते थे।
अतीत के गलियारे में देखे तो हॉकी की बगिया में उस समय सिर्फ यही खेल गली-कूचों में खेला जाता था। छह वर्ष की उम्र में ही नूरुद्दीन साहब ने हॉकी को थाम लिया और सिकंदरिया मैदान पर इसका ककहरा सीखा। 1947 में क्लब हॉकी से जुड़े और निरंतर खेलते रहे। उन्हें भोपाल हॉकी का जेंटिल क्यों कहा जाता है, इसके पीछे भी एक रोचक वाकया था। अपने समय में टाटा की टीम में आरएस जेंटिल हुआ करते थे। उनका नाम था रणधीर सिंह। वे हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार हुआ करते थे। कहा जाता था कि उनकी स्टिक पर गेंद आ जाए तो फिर गोल निश्चित है। एक बार भोपाल खेलने आई टाटा की टीम की ओर से खेलते हुए वे गोल नहीं कर पाए। भोपाल की टीम से खेल रहे नूरुद्दीन साहब ने गोल दागा और अपने खेल से सभी को प्रभावित किया। नूरुद्दीन साहब के खेल से आरएस जेंटिल इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके पास आकर कहा कि असली जेंटिल तो आप है। बस तभी से नूरुद्दीन साहब का नाम ‘भोपाल हॉकी का जेंटिल’ पड़ गया।
यही नहीं नूरुद्दीन साहब की चार पीढ़ियां हॉकी से जुड़ी रही। उनके नाती भी हॉकी खेल रहे हैं। नूरुद्दीन के बेटे एजाजुद्दीन ने भी हॉकी खेली और उनके दो बेटे नजमुद्दीन और एफाजुद्दीन भी हॉकी खेले।
नूरुद्दीन साहब कहा करते थे कि हमारे जमाने में हॉकी बड़ा साफ-सुथरा खेल हुआ करता था। तब दर्शक संजीदा कमेंट्स किया करते थे, जिससे खिलाड़ी बेहतर करने के लिए प्रेरित हुआ करता था। आज सब कुछ बदल गया है। हमारी कलात्मक हॉकी को विदेशियों ने पॉवर गेम बना दिया।
भोपाल हॉकी का यह वटवृक्ष तो अब मुरझा गया है, लेकिन उनकी यादें और उनका ‘जेंटिल’ होने का रुतबा हमेशा याद किया जाएगा।

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