शनिवार, 15 दिसंबर 2018

ओ रोमांचक @15days, डे-4 (15 अगस्त, 2018) करगिल से लेह: 230 किमी

ओ रोमांचक @15days
डे-4 (15 अगस्त, 2018)
करगिल से लेह: 230 किमी 












करगिल की सुबह और स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ की चहल-पहल दिखाई दे रही थी। नाश्ता करके हम लेह के लिए निकल गए। दोस्त ने द्रास जाना छोड़ दिया और साथ ही आगे बढ़ गया। हमें आज 230 किमी से अधिक चलना था। स्वतंत्रता दिवस होने के कारण कई जगह चेकिंग और ट्रेफिक भी थी। हमने राष्ट्रगान के साथ अपने दिन के सफर की शुरआत की।
करगिल के बाद ही लद्दाख रीजन शुरू हो जाता है। कुछ दूरी के बाद ही एक नई संस्कृति की झलक मिल जाती है। यहां के लोग बहुत ही मिलनसार और मददगार मिलेंगे। लगभग 15 किमी बार छूलात्से और यहां से 25 किमी दूर बुद्ध मोनेस्टरी। यहां बुद्ध की एक बहुत ऊंची पाषाण की प्रतिमा है। यहां हमने माउंंटेन टी ली और निकल गए मुलबेक के लिए। माउंटेन टी मतलब अदरक, नींबू और शहद की चाय। ये पहाड़ों पर आपको काफी राहत और एनर्जी देती है। मुलबेक से हम आगे बढ़े तो समुद्रतल से 12200 फीट की ऊंचाई पर नमिका ला पास को हमने पार किया। नमिका के बाद हम 40 किमी तक चले तो यहीं फोतू ला पास पड़ा। इसकी ऊंचाई समुद्रतल से 13500 फीट है। यह श्रीनगर से लेह के बीच सबसे ऊंची जगह है। यहां काफी ठंड थी। आसपास बर्फीले पहाड़ और आॅक्सीजन की थोड़ी कमी भी। यहां हमें अपने रैन कोट पहनने पड़े, क्योंकि बारिश की कुछ संभावना थी। ग्रुप फोटो के बाद हम यहां से निकल पड़े लामायुरू के लिए। लामायुरू बहुत ही सुंदर जगह है। पहाड़ों की ऊंचाई पर बौद्ध मठ। बौद्ध मठ के आसपास मिट्टी के बेहद पुराने मकान। बहुत ही खूबसूरत प्रकृति का नजारा। लामायुरू समुद्रतल से 11500 फीट पर है। यहां लंच करने के बाद हम खालत्से (खलसी) के लिए निकल पड़े। लामायुरू से खालत्से की दूरी लगभग 20 किमी है। लेकिन, पहाड़ों के बीच राइड करना अद्भुत है। ऐसा लगता है जैसे हम पहाड़ों को चीरते हुए धरती के अंदर ही अंदर जा रहे हैं। यह एक अलग ही रोमांचक अनुभव था। यहीं आपके साथ इंडस नदी भी मिल जाती है जो लेह तक आपके साथ ही रहेगी। खलसी से हम निकले नीमू (60 किमी) के लिए। रास्ता काफी बढ़िय़ा था। नेशनल हाइवे और हम तेज गति से बढ़ रहे थे। खलसी से नूरला, उलेयतोक्पो, सासपुल, बासगो गोम्पा होते हुए नीमू पहुंचे। यह रास्ता ठंड में बंद रहता है। सेना का ये पूरा क्षेत्र है। नीमू से लेह (40 किमी) तक मस्त रोड। मैंने पहली बार बाइक को पांचवें गियर में 105 किमी की गति तक चलाया। लेकिन, इससे आगे ले जाने की हिम्मत नहीं पड़ी। उस समय एक पंछी भी अगर टकराता तो फिर पता ही नहीं चलता। बीच में एक जगह पड़ती है, नाम कुछ वांगचुक मेमोरियल है शायद। ऊंचाई पर एक पैलेस जैसा कुछ है। एक फोटो है वहां का। लगभग 4:00 बजे हम लेह के करीब पहुंच गए। पेट्रोल पंप पर टैंक फुल कराया और होटल की ओर बढ़ गए। रास्ते में हॉल आॅफ फेम पड़ता है। लेह की ऊंचाई समुद्रतल से 11500 फीट है। आज का सफर समाप्त हुआ।

जब धड़कने बढ़ी तो 100 मीटर नहीं चल पाए...
लेह में पहुंचकर हम काफी खुश थे। फ्रेश होकर सोचा थोड़ा पास ही टहल आते हैं। मैं और ललित तैयार होकर बाहर निकल आए। होटल से पैदल ही 100 मीटर तक गए होंगे कि दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। समझ ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है। रास्ते किनारे बड़े पत्थर थे। हम वहीं बैठ गए। बातों-बातों में दम फूलने लगा। हमने लौटने का फैसला किया। 100 मीटर वापसी में हम चार जगह खड़े हुए। बातें भी करना बंद कर दिया, क्योंकि दम फूल रहा था। कुल मिलाकर फटी पड़ी थी। जैसे-तैसे होटल पहुंचे तो बाहर ही टीम लीडर मनीष मिल गए। उनसे आॅक्सीजन लेवल चेक करने को कहा। मनीष ने चेक किया। ललित का 84 और मेरा 92 था। मनीष ने कहा- ऐसी कोई बात नहीं। 60 के नीचे हो तो ही दिक्कत होती है। मनीष ने कहा कि पानी ज्यादा मात्रा में पीते रहो। हम धीरे से कमरे में पहुंचे और पलंग पर पसर गए। आराम करना ही सर्वश्रेष्ठ था। शाम को डिनर के बाद फिर कमरे में आराम ही किया। दिमाग में कई तरह के ख्याल आने लगे थे। अगला दिन आराम का था। सोते हुए हम दोनों सोच रहे थे कि हम आगे नहीं जाते। क्योंकि, दो दिन बाद सभी को लेह ही लौटना है। काफी देर की उथल-पुथल के बाद हम जैसे-तैसे सोए।

मुस्कराइये आप लेह में है...
क्रमश: ...

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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

ओ रोमांचक @15days, डे-3 (14 अगस्त, 2018) श्रीनगर से करगिल: 220 किमी

ओ रोमांचक @15days
डे-3 (14 अगस्त, 2018)
श्रीनगर से करगिल: 220 किमी









































सुबह सभी तैयार होकर हाउस बोट में नाश्ता कर रहे थे। एक नए रोमांच के सफर पर निकलने के लिए। कुछ ही देर में हमने हाउस बोट छोड़ा और अपनी-अपनी बाइक के पास पहुंच गए। टीम लीडर मनीष ने कमान संभाली और लगभग 9:00 बजे हम करगिल के लिए निकल गए। सफर का यह असल में पहला दिन था। पहले ही दिन हमें 220 किमी चलना था और इसमें भी झोजी ला पास को पार करना था। 
एक घंटे की राइड के बाद हम नेशनल हाइवे पर थे। कुछ ही देर में हम सिंधु नदी के किनारे मनोरम पहाड़ों के किनारे राइड कर रहे थे। लगभग 80 किमी चलने के बाद हम खूबसूरत सोनमर्ग पहुंच गए। यहां हरियाली और सुंदरता आकर्षित करती है। यहां हमने लंच किया। पराठे, दही और अचार। काफी ठंड थी और थोड़ी दूरी पर बालटाल भी, जहां से अमरनाथ यात्रा के लिए जाते हैं। लंच के बाद हम निकल पड़े। कुछ दूरी पर चलने के बाद पहाड़ी पर बाइक चलना शुरू हो गई। समझ आया कि ये झोजी ला पास है। झोजी ला की ऊंचाई समुद्रतल से 11500 फीट से अधिक है। बेहद धूल, कहीं कीचड़, कच्चे रास्ते, ट्रकों का ट्रेफिक भी। यह काफी रोमांच भरा और पहला अनुभव इस रोमांचक सफर का। झोजी ला पार करने के बाद हम सभी एक जगह रूके। चेहरों पर धूल जम गई थी। लेकिन, जोशीला अंदाज हमारे चेहरे पर खुशी के रूप में था। झोजी ला पास दुनिया के सबसे दुर्गम और ऊंचाई वाले रास्तों में से एक है। हमने एक-दूसरे को गले लगाया और आगे बढ़े। आगे भी रास्ते कहीं-कहीं धूल भरे थे।
यहां से लगभग 40 किमी चलने के बाद हम उस जगह पहुंच गए जो कारगिल के शूरवीरों की गाथा बयां करता है। जी हां, द्रास सेक्टर। यहां भारतीय सेना ने 1999 के करगिल युद्ध में शहीद जवानों की याद में करगिल वार मेमोरियल बनाया है। यहां हमारी आन, बान और शान का प्रतीक देश का तिरंगा दूर से ही लहराता हुआ दिखाई देता है। यहां रखी बोफोर्स तोप, अमर जवान ज्योति, वीर भूमि, शहीदों के बारे में जानकारी, आॅपरेशन विजय और शहादत पर पूरे युद्ध कौशल की जानकारी आंखों को भीगा देती है। हमारे लिए आजादी बेहद मामूली है। लेकिन, वास्तविकता टाइगर हिल की पहाड़ी की ऊंचाई और दुर्गमता को देखकर पता चलती है। द्रास की इन पहाड़ियों के पीछे ही एक नदी है और उसके बाद पाकिस्तान की सीमा, जैसा वहां मौजूद कुछ लोगों ने बताया। हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारे बड़े भाई श्री अखिलेश जैन आॅपरेशन विजय का हिस्सा रहे है। 100 सैल्यूट आपको दादा। यहां हमने लगभग 45 मिनट गुजारे और करगिल के लिए निकल पड़े। हमने यहां की याद को अपने साथ लिया और निकल पड़े।
लगभग 25 किमी चलने के बाद मेरे मित्र ललित को पता चला कि उसका मोबाइल कहीं गिर गया है। फिर उसे याद आया कि द्रास सेक्टर में ही कहीं गिरा है। मैं और ललित द्रास की ओर वापस हुए।  2-3 किमी चलने के बाद एक सेना का ट्रक ठीक हो रहा था। उनसे बात की तो उन्होंने कहा- वापस मत जाओ। 5-6 किमी आगे सेना का कैंप है। वहां से द्रास में बात करो। हम वहां पहुंचे। कुछ ही देर में बात हुई। उन्होंने थोड़ी देर इंतजार करने को कहा। हम वहीं रूके रहे। थोड़ी देर बाद फिर बात हुई तो मोबाइल का पता नहीं चला। फिर उन्होंने अपना नंबर दिया और हमार नंबर लिया। अनमने मन से हम करगिल की ओर बढ़े। गाड़ी का पेट्रोल खत्म होने का संकेत दे रहा था। सभी आगे जा चुके थे। फिर हमने चंदू दादा से बात की। उन्हें बताया कि पेट्रोल खत्म होने वाला है। उन्होंने हमारी गाड़िय़ों के डॉक्टर उर्फ इमरान भाई से बात कराई। बोले- 5-6 किमी आगे ही पेट्रोल पंप है और हम भी यहीं खड़े हैं। हम पहुंच गए। टैंक फुल कराया और होटल पहुंचे। लगभग अंधेरा होने ही वाला था। कमरे में पहुंचे।
दोस्त का मन नहीं लग रहा था। फिर सोचा पुलिस में शिकायत कर देते हैं। 2 किमी पर थाना था। हम वहां पहुंचे तो वे लोग डिनर कर रहे थे। थोड़ी देर इंतजार के बाद उन्होंने हमारी बात सुनी और कहा कि दूसरे थाने में शिकायत दर्ज होगी। हम दूसरे थाने गए तो वहां के हवलदार ने हमें यह कहते हुए जाने को कहा कि थाना बंद हो गया। पहली बार सुना थाना भी बंद होता है। चूंकि, अगला दिन स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ का था, इसलिए कड़ी चौकसी में सारे पुलिसकर्मी लगे हुए थे। हम वापस लौटे। भरे मन से डिनर किया। फिर कमरे में गए। ललित बोला सुबह द्रास जाउंगा। सोते-सोते और बतियाते रात के 1:00 बज गए।

मुस्कराइये आप करगिल में है...
क्रमश: ...
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गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

ओ रोमांचक @15days
डे-2 (13 अगस्त, 2018)

















ओ दिन भी आ गया जब हमारे सपने को पर लगने वाले थे। हम सुबह उठे तैयार हुए। आलू के पराठे और दही का नाश्ता किया। होटल सदफ से टैक्सी करके हम डल झील निकल गए। शिकारा से हम क्राउन आॅफ इंडिया हाउस बोट पहुंचे। मनीष जोधानी (ट्रिप में हमारे टीम लीडर) से मुलाकात हुई। उनके साथ ही कनिका और ग्रुप के अन्य सदस्यों से भी। हाउस बोट तो कल्पना से भी परे है। पानी के ऊपर देवदार की लकड़ी से बने ये हाउस बोट किसी पांच सितारा होटल से कम नहीं। एकदम सामने गैलरी, फिर कॉन्फ्रेंस हॉल, फिर डाइनिंग हॉल और बाद में कमरे। डबल बेड कमरों में ड्रेसिंग रूम और लेटबॉथ अटैच। अद्भुत है ये हाउस बोट की दुनिया।
यहां चाय के साथ ही पहली बार वेन हेगार्टी (आॅस्ट्रेलिया), रोडनी होरीहाता (जापान, अमेरिका), तेजा अन्नदाता (अमेरिका), मिखाल जेझिंस्की (पोलैंड), भास्कर श्रीनिवासन (आॅस्ट्रेलिया), सेबेस्टियन जयराज (अमेरिका) से मुलाकात हुई। वेन प्रोफेशनल राइडर है। रोडनी को भारत में पांच माह राइड का अनुभव रहा है। तेजा हमारे ग्रुप का यंग ब्वॉय भी राइडर है। पिछली बार वह इस ट्रिप में बीमार हो गया था तो लौटना पड़ा। इस ग्रुप में हम चारों के अलावा लगभग सभी को राइडिंग का अच्छा खास ज्ञान था। इसके बाद ब्रीफिंग होना था जो शाम तक के लिए टाल दी गई। तब तक हमें अपनी-अपनी बाइक दी गई और शहर का राउंड मारने को कहा गया। हम पहली बार रॉयल एनफील्ड हिमालयन की सवारी कर रहे थे। मैंने बाइक चुनी एचपी 64 ए-5370 और निकल पड़े शहर में घुमने। यहां नॉनवेज बड़ी आसानी से मिल जाता है। हम तीनों भाई वेजिटेरियन थे। मित्र ललित को नॉनवेज में वाजवान (एक प्रसिद्ध कश्मीरी डिश) खाना था, सो हम होटल मुगल दरबार पहुंचे। वाजवान में कई तरह का नॉनवेज होता है। ललित के लिए क्वार्टर वाजवान और हमने पनीर, दाल-रोटी खाई। यहां से निकल पड़े शंकराचार्य टेंपल। यह डल झील के सामने पहाड़ी पर है। ऊपर तक घूमते रास्तों से बाइक पहुंच गई। फिर लगभग 150 सीढ़ियां और मंदिर। कहते हैं शंकराचार्य यहां आए थे। दर्शन करने के बाद हम लौट आए।
पांच गियर की यह बाइक 411 सीसी की है। चलाने में आनंद आ गया। अब अगले 9 दिन इसी का साथ था। हम अपने हाउस बोट पहुंचे। शाम को परिचय के साथ ही ब्रीफिंग हुई। टीम लीडर मनीष ने अगले नौ दिन तक की जानकारी दी और बताया कि कैसे रास्ते होंगे, कैसे पार करना है... आदि। डिनर के बाद हमने अपनी तैयारी की। बाइक के साथ ही आपको लेग गार्ड, टैंक बैग, हेलमेट भी लेना होता है। हमने सभी लिया। अगली सुबह के रोमांचक सफर पर निकले से पहले हाउस बोट में नींद ही नहीं आ रही थी। रात के एक बजे के बाद हम सो गए।

मुस्कराइये आप श्रीनगर में है...
क्रमश:...
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